environmental-education

Q.39: सुंदरलाल बहुगुणा- पर्यावरणीय कार्यकर्ता के जीवन परिचय तथा योगदान की विवेचना कीजिए–

उत्तर : सुंदरलाल बहुगुणा

चिपको आंदोलन' के प्रणेता स्व. सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म उत्तराखंड के सिलयारा के ग्राम मरोडा टिहरी में 9 जनवरी 1927 को हआ था। उनकी माता का नाम पर्णादेवी तथ पिता का नाम अंबादत्त बहुगुणा था। उनकी संतान हैं– राजीवरंजन बहुगुणा, प्रदीप बहुगुणा, माधुरी पाठक । स्व. श्री सुंदरलाल बहुगुणा एक गाँधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता थे।

अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही पर्वतीय नवजीवन मंडल संस्था की स्थापना की थी। सन् 1949 में मीराबेन व ठक्कर बापा के संपर्क में आने के बाद भी सुंदरलाल बहुगुणा ने दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयास किए तथा टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल भी स्थापित किया। उन्होंने दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाने हेतु आंदोलन भी चलाया। सन् 1971 में सुंदरलाल बहुगुणा ने 16 दिनों का अनशन किया और चिपको आंदोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र' के नाम से प्रसिद्ध हो गए। बहुगुणा के चिपको आंदोलन का घोष वाक्य यह है–

"क्या जंगल के उपकार । मिट्टी पानी और बयार ।

मिट्टी पानी और बयार । जिंदा रहने के आधार ।"


सुंदरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना महत्त्वपूर्ण है । चिपको आंदोलन को पर्यावरण रक्षा का महत्त्वपूर्ण जनआंदोलन माना जाता है। यह आंदोलन भारत के उत्तराखंड (तब उत्तरप्रदेश का भाग) में किसानों ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। वे राज्य के वनविभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परम्परागत अधिकार जता रहे थे। यह आंदोलन चमेली जिले में सन् 1973 को आरंभ हुआ तथा एक दशक के अंदर पूरे उत्तराखंड क्षेत्र में फैल गया। चिपको आंदोलन की मुख्य बात यह थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया। इस आंदोलन की शुरुआत सुंदरलाल बहुगुणा, चंडीप्रसाद भट्ट, श्रीमती गौरादेवी के हाथों में थी।

सुंदरलाल बहुगुणा ने बड़े बाँधों को बनाये जाने का विरोधी आंदोलन भी चलाया। इसके अतिरिक्त 1965 से 1970 तक पहाड़ी क्षेत्रों में शराबबंदी हेतु उन्होंने महिलाओं को एकत्रित किया। सन् 1981 से 1983 के बीच पर्यावरण को बचाने का संदेश लेकर हिमालयी क्षेत्र के करीब 5000 किलोमीटर की यात्रा का नेतृत्व किया। इस यात्रा ने न केवल उन्हें सुर्खियों में लाया बल्कि आंदोलन देश में चर्चित हुआ।

लगभग 40 वर्ष पूर्व उत्तरांचल की वादियों में पेड न काटने के लिए महिलाओं का नारा था पहले हमें काटो तब जंगल और पेड़ । इस आवाज के सामने पेड़ काटने वाले ठेकेदारों व सरकार से घुटने टेक दिये। श्री सुंदरलाल बहुगुणा के इस प्रयास का यह नतीजा रहा कि आंदोलन से 15 सालों तक के लिए उत्तराखंड सरकार ने पेड़ काटने पर रोक लगा दी । पर्यावरण की रक्षा के निमित्त उन्होंने बड़े बनाए जा रहे बाँधों का विरोध का आंदोलन चलाया। टिहरी डैम के निर्माण के विरोध में उन्होंने 74 दिन तक भूख हड़ताल की। टिहरी बाँध उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में भागीरथी और मिलंगना नदी पर बनने वाला एशिया का सबसे बड़ा और विश्व का पाँचवा सर्वाधिक ऊंचा (अनुमानित ऊंचाई 2605 मीटर) था। इस परियोजना का विरोध भी सुंदरलाल बहुगुणा तथा अनेक पर्यावरणविदों ने इन आधारों पर किया–23 गाँव पूर्णतः तथा 72 गाँव आंशिक डूब में आना,85,600 लोगों का विस्थापित होना, 2500 हेक्टर भूमि तथा 1600 हेक्टेयर कृषि भूमि का जलाशय में डूबना, भूकंप का क्षेत्र में खतरा होना चाहिए।

पर्यावरण को संपत्ति मानने वाले श्री सुंदरलाल बहुगुणा 7 जुलाई 1972 को दिवंगत हुए। उन्हें 'पर्यावरण गाँधी' संबोधन दिया गया।

पर्यावरण के क्षेत्र में उनके योगदान के कारण सन् 1980 में अमेरिका की पेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने उन्हें पुरस्कृत किया। सन् 1987 में राइट लाइवली हुई पुरस्कार चिपको आंदोलन के कारण उन्हें प्राप्त हुआ। इसी वर्ष उन्हें सरस्वती सम्मान दिया गया। सन् 1989 में I.I.T. रुड़की ने उन्हें सामाजिक विज्ञान में डॉक्टर की मानद उपाधि दी। सन् 1998 में उन्हें पहल सम्मान तथा सन् 1999 में गाँधी सेवा सम्मान प्राप्त हुआ। सन् 2000 में सांसदों की फोरम द्वारा श्री सुंदरलाल बहुगुणा को सत्यपाल मित्तल अवार्ड से सम्मानित किया गया। सन् 2001 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। उनकी पुस्तक Environment: Myth & Reality प्रकाशित हो चुकी है।


B-Ed Notes For Error Please Whatsapp @9300930012