भौतिक शास्त्र

Que : 561. संधारित्र किसे कहते हैं? समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए।

Answer: संधारित्र- संधारित्र वह युक्ति है, जिसके द्वारा किसी चालक के आकार या आयतन में बिना परिवर्तन किए उसकी विद्युत् धारिता बढ़ायी जा सकती है। वास्तव में संधारित्र विद्युत् ऊर्जा (अर्थात् आवेश) संचित करने का साधन है।

संधारित्र का सिद्धान्त- मानलो A एक पृथक्कृत चालक प्लेट है जिसे धन आवेश दिया गया है। इसके समीप दुसरी अनावेशित चालक प्लेट B लाने पर प्रेरण द्वारा B के निकटवर्ती तल पर ऋण आवेश तथा दूरवर्ती तल पर धन आवेश उत्पन्न हो जाता है।

561. संधारित

प्रेरित ऋण आवेश चालक A के विभव को कम करने का प्रयास करता है, जबकि प्रेरित धन आवेश A के विभव को बढ़ाने का प्रयास करता है। प्रेरित ऋण आवेश प्लेट A के अधिक निकट है, अत: प्लेट A का विभव कम हो जाता है। इस प्रकार सूत्र C = Q/V के अनुसार उसकी धारिता बढ़ जाती है।

यदि B का सम्बन्ध पृथ्वी से कर दिया जाये तो स्वतन्त्र आवेश पृथ्वी में चला जाता है और चालक B पर केवल प्रेरित ऋण आवेश ही बचा रहता है। अतः चालक A का विभव और कम हो जाता है । फलस्वरूप उसकी विद्युत् धारिता और बढ़ जाती है।

इस प्रकार, किसी आवेशित चालक के समीप पृथ्वी से सम्बन्धित अन्य चालक को लाने पर आवेशित चालक की विद्युत् धारिता बढ़ जाती है।

इस संयोजन को संधारित्र कहते हैं। यही संधारित्र का सिद्धान्त है।

मानलो A और B समान्तर प्लेट संधारित्र की दो प्लेटें हैं, जिनके बीच की दूरी d है तथा उनमें से प्रत्येक का क्षेत्रफल A है। दोनों के मध्य K परावैद्युतांक वाला माध्यम है।

प्लेट A को + Q आवेश देने पर प्लेट B के समीपवर्ती तल पर - Q आवेश तथा दूरवर्ती तल पर +Q आवेश प्रेरित हो जाता है। चूँकि B पृथ्वी से सम्बन्धित है, प्रेरित आवेश + Q पृथ्वी में चला जाता है और B पर केवल –Q आवेश शेष रहता है।

इस प्रकार यदि प्लेट A पर आवेश का पृष्ठ घनत्व σ है, तो B पर आवेश का पृष्ठ घनत्व - σ होगा

561. संधारित

चित्र- समांतर प्लेट संधारित्र

अत: दोनों प्लेटों के बीच विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता

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