PHYSICS

Que : 162. पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में P-N संधि डायोड के उपयोग का वर्णन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए- (i) परिपथ का नामांकित चित्र(ii) कार्यविधि (iii) निवेशी विभव व निर्गत विभव का समय के साथ परिवर्तन आरेख।

उत्तर- दिष्टकारी- ऐसा उपकरण जो प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट-धारा में परिवर्तित कर दें, उसे दिष्टकारी कहते हैं।


चित्र- अर्द्ध तरंग दिष्टकारी के लिए निवेशी एवं निर्गत विभव आरेख

कार्यविधि- जब ट्रांसफॉर्मर T की प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती वोल्टेज लगाया जाता है, तो द्वितीयक कुण्डली में भी अन्योन्य प्रेरण के कारण प्रत्यावर्ती वोल्टेज प्रेरित हो जाता है। निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के एक पूर्ण चक्र में दो अर्द्धचक्र होते हैं- एक धनात्मक तथा दूसरा ऋणात्मक। दोनों अर्द्धचक्र क्रम से चलते हैं जिसके फलस्वरूप प्रथम अर्द्धचक्र के कारण द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित वोल्टेज का A सिरा धनात्मक व B सिरा ऋणात्मक तथा द्वितीय अर्द्धचक्र में A सिरा ऋणात्मक तथा B सिरा धनात्मक हो जाता है। P-N संधि डायोड व लोड प्रतिरोध के संयोजन का परिपथ प्रत्येक अर्द्धचक्र में द्वितीयक कुण्डली के मध्य बिन्दु E से पूरा हो जाता है।

अब निवेशी सिगनल के प्रथम अर्द्धचक्र के कारण जब द्वितीयक कुण्डली का A सिरा धनात्मक होता है, तो डायोड D1 अग्र अभिनत होता है तथा डायोड D2 उत्क्रम अभिनत। इस प्रकार D1 कार्य करता है तथा लोड प्रतिरोध पर धनात्मक दिष्टधारा का अर्द्धचक्र प्राप्त होता है। पुनः निवेशी सिगनल के द्वितीयक अर्द्धचक्र के दौरान द्वितीयक कुण्डली का B सिरा धनात्मक होता है। इस स्थिति में डायोड D2 अग्र अभिनत होकर कार्य करता है तथा D1 उत्क्रम अभिनत होकर कार्य नहीं करता है। लोड प्रतिरोध पर पुनः धनात्मक द्वितीय अर्द्धचक्र प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है तथा निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के स्थान पर लोड प्रतिरोध में दिष्टधारा प्राप्त हो जाती है।

इस परिपथ में निवेशी सिगनल के दोनों अर्द्धचक्रों के दौरान लोड प्रतिरोध से दिष्ट-धारा प्रवाहित होती रहती है, इसलिए इस रूप को पूर्ण तरंग दिष्टकारी कहा जाता है। निम्न चित्र में निवेशी विभव तथा निर्गत विभव का समय के साथ परिवर्तन के आरेख प्रदर्शित किये गए हैं।


चित्र- पूर्ण तरंग दिष्टकारी के लिए निवेशी एवं निर्गत विभव आरेख


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